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राग दरबारी (उपन्यास) : श्रीलाल शुक्ल

ड्राइवर की हँसी में ब्रेक लग गया। ट्रक की रफ्तार भी कुछ कम पड़ गई। उसने रंगनाथ को एक बार गौर से देखकर पूछा, ‘‘आप मित्तल साहब को नहीं जानते ?’’
‘‘नहीं।’’
‘‘जैन साहब को ?’’
‘‘नहीं।’’
ड्राइवर ने खिड़की के बाहर थूक दिया और साफ़ आवाज़ में सवाल किया, ‘‘आप सी.आई.डी. में काम नहीं करते ?’’
रंगनाथ ने झुँझलाकर कहा, ‘‘सी.आई.डी. ? यह किस चिड़िया का नाम है ?’

ड्राइवर से जोर की सांस छोड़ी और सामने सड़क की दशा का निरीक्षण करने लगा।

जब कहीं और जहां भी कहीं मौका मिले, वहां टांगे फैला देनी चाहिये, इस लोकप्रिय सिद्धांत के अनुसार गाड़ीवान बैलगाड़ियों पर लेटे हुये थे और मुंह ढांपकर सो रहे थे। कूछ बैलगाड़ियां जा रही थीं। जब कहीं और जहां भी कहीं मौका मिले, वहां टांगे फैला देनी चाहिये, इस लोकप्रिय सिद्धांत के अनुसार गाड़ीवान बैलगाड़ियों पर लेटे हुये थे और मुंह ढांपकर सो रहे थे। बैल अपनी काबिलियत से नहीं, बल्कि अभ्यास के सहारे चुपचाप सड़क पर गाड़ी घसीटे लिये जा रहे थे। यह भी जनता और जनार्दन वाला मजनून था, पर रंगनाथ की हिम्मत कुछ कहने की नहीं हुयी। वह सी.आई.डी. वाली बात से उखड़ गया था। ड्राइवर ने पहले रबड़वाला हार्न बजाया, फिर एक ऐसा हार्न बजाया जो संगीत के आरोह-अवरोह के बावजूद बहुत डरावना था, पर गाड़ियां अपनी राह चलती रहीं। ड्राइवर काफ़ी रफ्तार से ट्रक चला रहा था, और बैलगाड़ियों के ऊपर से निकाल ले जाने वाला था; पर गाड़ियों के पास पहुंचते-पहुंचते उसे शायद अचानक मालूम हो गया कि वह ट्रक चला रहा है, हेलीकाप्टर नहीं। उसने एकदम से ब्रेक लगाया, पेनल से लगी हुई लकड़ी नीचे गिरा दी, गियर बदला और बैलगाड़ियों को लगभग छूता हुआ उनसे आगे निकल गया। आगे जाकर उसने घृणापूर्वक रंगनाथ से कहा,"सी.आई.डी. में नहीं हो तो तुमने यह खद्दर क्यों डांट रखी है जी?"

रंगनाथ इन हमलों से लड़खड़ा गया था। पर उसने इस बात को मामूली जांच-पड़ताल का सवाल मानकर सरलता से जवाब दिया,"खद्दर तो आजकल सभी पहनते हैं।"

"अजी कोई तुक का आदमी तो पहनता नहीं।" कहकर उसने दुबारा खिड़की के बाहर थूका और गियर को टाप में डाल दिया।

रंगनाथ का पर्सनालिटी कल्ट समाप्त हो गया। थोड़ी देर वह चुपचाप बैठा रहा। बाद में मुंह से सीटी बजाने लगा। ड्राइवर ने उसे कुहनी से हिलाकर कहा,"देखो जी, चुपचाप बैठो, यह कीर्तन की जगह नहीं है।"

रंगनाथ चुप हो गया। तभी ड्राइवर ने झुंझलाकर कहा,"यह गियर बार-बार फिसलकर न्यूट्रल ही में घुसता है। देख क्या रहे हो? ज़रा पकड़े रहो जी। थोड़ी देर में उसने दुबारा झुंझलाकर कहा,"ऐसे नहीं इस तरह! दबाकर ठीक से पकड़े रहो।

ट्रक के पीछे काफ़ी देर से हार्न बजता आ रहा था। रंगनाथ उसे सुनता रहा था और ड्राइवर उसे अनसुना करता रहा था और ड्राइवर उसे अनसुना करता रहा था। कुछ देर बाद पीछे से क्लीनर ने लटककर ड्राइवर की कनपटी के पास खिड़की पर खट-खट करना शुरू कर दिया। ट्रकवालों की भाषा में इस कार्रवाई का निश्चित ही कोई खौफ़नाक मतलब होगा, क्योंकि उसी वक्त ड्राइवर ने रफ़्तार कम कर दी और ट्रक को सड़क की बायीं पटरी पर कर लिया।

हार्न की आवाज़ एक ऐसे स्टेशन-वैगन से आ रही थी जो आजकल विदेशों के आशीर्वाद से सैकड़ों की संख्या में यहां देश की प्रगति के लिये इस्तेमाल होते हैं और हर सड़क पर हर वक्त देखे जा सकते हैं। स्टेशन-वैगन दायें से निकलकर आगे धीमा पड़ गया और उससे बाहर निकले हुये एक खाकी हाथ ने ट्रक को रुकने का इशारा दिया। दोनों गाड़ियां रुक गयीं।


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